Santosh Bhartiya show

Santosh Bhartiya

Summary: Editors Take - Santosh Bhartiya

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  • Artist: Santosh Bhartiya
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 मुस्कुराइये की जकड.न टूट रही है..... | File Type: audio/mpeg | Duration: 488

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 जुलाई महीने में भारत के १४ करोड़ लोगो की जमा की हुई आमदनी समाप्तः हो जाएँगी - संतोष भारतीय | File Type: audio/mpeg | Duration: 593

अमेरिका से खबर आयी है की , दुनिया की सबसे पुरानी कंपनियों में से एक ब्रुक्स ब्रदर्स उसने अपना काम बंद कर दिया है। उसे इतनी आर्तिक हानि होगयी उसने घोषणा करदी की अब वो आगे अपना काम बंद कर रहे है। ब्रोक्स ब्रदर्स अमेरिका की ऐसी कपडा बनाने वाली कंपनी है सिल्ले सिलिये कपडे जो २०० साल से बाजार में थी और जिसने अमेरिका के ४० से भूतपूर्व प्रेसिडेंटस के लिए कपडे बनाये।आखिर में उसने ओबामा के लिए कपडा बनाया मुझे नहीं लगता की ट्रम्प के लिए बना या नहीं बनाया क्युकी ट्रम्प का नाम अभी तक मेरी नज़र में नहीं आया है पर हां ४० भूतपूर्व राष्ट्रपतियो के लिए उन्होने कपडे बनाय। इसका मतलब है की दुनिया में बड़ी कंपनियों के बंद होने का सिलसिला अब तेज़ी से शुरू हो जाएगा और इसी को ध्यान में रख के मुझे हिंदुस्तान में एक क्रेडिबल सर्वे और एक चेतावनी याद आती है , जो २ महीने पहले आयी थी जिसेमें ये अंदाज़ा लगाया गया था की जुलाई महीने में भारत के १४ करोड़ लोगो की जमा की हुई आमदनी समाप्तः हो जाएँगी। मतलब जो सेविंग्स है उनके बैंक में जो उन्होंने बचत की है वो समाप्तः हो जाएगी।ये एक खतरनाक चेतावनी थी १४ करोड़ लोग बहौत होते है और अगर उनके बैंक अकाउंट में से उनकी बचत का पैसा खर्च हो जाता है तो वो करेंगे क्या ? एक परिवार में मोटे तौर पर हम ४ या ५ लोग मानते है, और अब जब लोग नौकरिया ख़तम होने या काम ख़तम होनी की वजह से अब अपने अपने गाओं गए है , तब वह पर उनके लिए काम नहीं है और जो गाओं में लोग थे उनका भी भोज मिलकर के एक परिवार के ऊपर बहौत सख्त इस्थितिया पैदा कर रहा है। हिन्दुतान की सरकार इस स्थिति से अवगत है की नहीं मुझे नहीं पता, मै यह मानता हूँ की सरकार है तो अवगत होगी ही और इसके बारे में सोचना समझना भी शुरू कर दिया होगा , पर अभी तक कही से झलक नहीं मिली है की सरकार इस स्थिति की गम्बिरता को समाज रही है। १४ करोड़ लोगो के पास पैसे ख़तम होने का मतलब उन जीने के सादन का समाप्तः होना है। अगर जीने का सदन समाप्तः होता है तो वो कैसे जियेंगे , इसका मतलब है की देश में लॉ एंड आर्डर की बड़ी समस्या उत्पन होने वाली है। और जो संकेत मिल रहे है जीने खबरे ना टेलीविज़न दिखा रहा है , ना अखबार दिखा रहा है और जीने रोकने की हरचंद कोशिश हो रही है , वो खबर यह है की जगह जगह लूट शुरू हो गयी है , दिल्ली जैसी जगहों में खड़ी हुई गाड़ी का शीशा तोड़ करके गाड़ी के अंदर रखा सामान लोग उठा ले जा रहे है और लोग उने रोक नहीं पा रहे है। चलती हुई कार के निचे तेल भरा गुब्बारा फेंक करके कारो को रोक कर के और जब कार में बैठे लोग निचे देखने उतरते है की की क्या कार में गड़बड़ी हुई तो कार के सारा सामान चुराया जा रहा है यह अभी हाल का डेवेलप पोजीशन है। मै ये इसलिए कह रहा हूँ क्युकी अगर कानून वेवास्ता की सिथि लूट मार की वजह से पैदा हुई उसे कोई भी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी नहीं रोक सकती , पुलिस तो बिलकुल नहीं रोक सकती , क्युकी आम तोर पर लोग यह मानते है की पुलिस का हिस्सा हर तरह की चोरी या डकैती या बेमानी में होता है , उस इलाके के जितने गिरहो है वो पुलिस से बिना साठ घाट किये इस बात को नहीं करते यह आम तौर पर हिंदुस्तान में लोगो का मन्ना है। अगर ऐसी सिथि होती है तो दिल्ली का क्या होगा अभी दिल्ली के दंगो में एक रिपोर्ट में कहा की बहार के लोग आये ट्रको और बसों में बैठ के और उन्होंने पूर्व दिल्ली में दंगे किये और लौट गए। पुलिस क्या कह रही है मै उसकी बात नहीं कह रहा हूँ मै इंडिपेंडेंट रिपोर्ट की बात कर रहा हूँ । अगर ऐसे ही दिल्ली के चारो तरफ बसै हुए लोग ट्रको , बसों , ट्रैक्टरों में आये और किसी किसी मोहल्ले को लूट के चले गए तो क्या स्तिथि बनेगी , तब यह स्तिथि बनेगी की लोग मांग करेंगे की आपातकाल लगाओ और आपातकाल लगाने का मतलब है आज की तारिक़ में नागरिको की सारी अधिकार समाप्तः होना , और उन लोगो को अहसामित अधिकार मिल जाना खासकर लॉ इंफोर्स्मेंट एजेंसी को जो अब तक अपना काम करने में सफल नहीं रही है यह स्थिति देश के सामने खड़ी है कोई भी आर्थिक संबवाना नज़र नहीं आती , किसी भी तरह के बेरोजगारों को काम मिले यह समाज मैं नहीं आता , गाओं में मनरेगा वाली योजना में काफी पड़े लिखे लोग शिक्षा में तो हाई हैं लगीं जो ऊंचे पदों पर रहे हैं और जो छोड़ कर अपने गाओं गए हैं वो भी मनरेगा में काम कर रहे हैं। हलाकि इसके रिपोर्ट विस्तार से आणि चाइये थी लेकिन कही पर भी उस तरह से रिपोर्ट नहीं आयी हैं। सरकार के सामने एक बड़ा सवाल इसी जुलाई ख़त्म होते होते या अगस्त की सुरुवात में आना वाला हैं जिसके लिए सरकार शायद तैयार नहीं हैं। गल्फ की स्तिथि ने भी चिंतित कर दिया हैं खड़ी देशो में भारतीयों की निकलने का सिलसिला कुवैत में शुरू कर दिया हैं , और लगभग सभी खड़ी देशो ने ये तय कर लिया हैं की हम होने यहाँ से नॉन मुस्लिम इंडियन को निकल देंगे , पहली खेत कुवैत से ८ लाख लोगो की हमारे यहाँ आने वाली हैं , हमने पहले ही चेतावनी दी थी की जिस तरीके से दुबई से २ लोगो एक बड़ा ग्रुप बना कर के अभियान चला रहे हैं उससे खड़ी देशो से भारतीयों की नौकरी अगर समाप्तः होती हैं तो भारत की क्या अर्तिक स्तिथि होगी , एक महिला हैं जो दुबई में थी जिन्होंने घणा का कैंपेन वही रहने वाले मुसलमानो के खिलाफ चलाया और वो अपने को भारत में विश्व हिन्दू परिषद् का सदस्य कहती हैं और वह पर उन्होंने सोचा की हम यहाँ के मुसलमानो के ऊपर घणा का अभियान चला कर हम अपनी ववाइये अपने देश में लेंगे और सरकार हमे अपना घणा का राजदूत बना लेंगी और वही बात वह पर रहने वाले एक व्यापारी ने की जो अपने को हिन्दू कहते हैं और वह के मुसलमानो को बुरी तरह से गालिया देना शुरू की और यह सब सच मूछ नहीं हुआ पब्लिक मीटिंगको भी नहीं हुआ , ये हुआ सोशल मीडिया के ऊपर और तब सबसे पहले UAE के राजकुमारी ने कहा की ये कैसे लोग हैं जो हमारे यहाँ रहते हैं , हमारे यहाँ कमाते हैं , हमारा कहते हैं और हमे गालिया देते हैं। हमे सोचना पड़ेगा इनको हम रखने या ना रखे। जब ये चेतावनी आई थी तब ही हम चौक गए थे की खड़ी देशी में कुछ ऐसा होने वाला हैं जो भारत के लिए बहौत भरी मुसीबत तैयार करेगा। इसके बार यह कुवैत में हुआ , क़तर में हुआ और अब पुरे खड़ी देशो में सारे साशको ने मिलकर के ये तय कर लिया हैं या यहाँ के सरकारों ने की हम अपने यहाँ से नॉन मुस्लिम काम करने वाले लोगो को वह से निकलेंगे और उनके जगा पर अपने देश के लोगो को काम देंगे। यह स्थिति भारत में क्या संकट पैदा कारगी मै नहीं कह सकता क्युकी जो लोग लौटेंगे यहाँ पर वो यह पर आ कर के एक घणा का व्यापार करेंगे और दूसरा भारत की चरमराती हुई अर्थवेवस्ता को और दबाओ में लाएंग। एक तरह से दुबई से निकलने वाले लोगो के लिए स्वागत किया जा सकता हैं और वो सिर्फ यह हैं की भारत से बैंको से पैसा चुराने वाले लोग थे जिन्होंने लोन लिया १०० करोड़ तक , २०० करोड़ तक वह सब देश छोड़ करके दुबई में चले गए हैं , पैस उन्होंने स्टीपेन कर लिया कम्पनिया उनकी बंद हो गयी अब वो NIP हुई सरकार ने उनका पैसा माफ़ कर दिया और वह सब वह पर १०० , २०० , ३०० करोड़ लेकर के दुबई में मस्ती मर रहे थे नए व्यापार के एवेन्ये तलाश कर रहे थे , अगर वो सब भी निकले जाते हैं तो उनका स्वागत होना चाइये ताकि वो हिंदुस्तान में आये और कानून की शिकंजे में जो उन्होंने पैसा लिया हैं उस पैसा का वो भुक्तान करे , लेकिन शायद ऐसा होगा नहीं क्युकी इसमें सिस्टम के बड़े बड़े लोग शामिल हैं तो वह यह होने नहीं देंग उनकी मदत ही करेंगे लेकिन जो भी स्थिति जुलाई के बाद आने वाली हैं वो स्तिथि बहौत खतरनाक स्तिथि हैं और साकार को उसका सामना करने के लिए तैयार रहना चाइए।

 देश के लोगों को भी अब बेठकर महात्मा गांधी को याद करना होगा अगर उन्हें आत्मनिर्भर होना है | File Type: audio/mpeg | Duration: 939

मैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को इस्स बात के लिए बधाई दूँगा कि उन्होंने चीन के साथ फ़िलहाल सीमा विवाद को शांत कार दिया।दोनो तरफ़ तनी हुईं बंदूक़ें थोड़ी सी नीचे आगई हैं। प्रधानमंत्री मोदी को लेकर के ज़्यादा सवाल नहीं हैं बस थोड़े से सवाल हैं और वो सवाल देश के नागरिकों के सवाल हैं। अगर हमारे देश के राष्ट्रीये सुरक्षा सलाहकार और जो दरसल एक फ़ैंटम के रूप में उभरे हैं, जिन्हें हर विषये का ज्ञान है और जो हर राष्ट्रिये संकट में सामने आकर के उसका हाल निकालते हैं, अगर उन्हें शामिल करना था तो उन्हें प्रारम्भ में ही शामिल क्यों नहीं किया गया ? हमारे २० जवानो की शहादत चीन-भारत सीमा में गलवान घाटी में क्यों हुई? ये प्रश्न इसलिए खड़ा होता है क्यों के तब फिर कुछ बयान याद आते हैं। एक बयान जिसका अभी तक कोई खंडन नहीं आया है प्रधानमंत्री जी का के, ना कोई हमारी सीमा में आया, ना किसी ने कहीं भी कोई क़ब्ज़ा किया और हमारी एक भी चौकी किसी के पास नहीं हैं, उन्होंने चीन का नाम कही नहीं लिया। लेकिन गलवान घाटी में और कोई देश है नहीं सिर्फ़ चीन है इसलिए ये मानना चाहिए के इशारे में उन्होंने चीन के बारे में ही कहा। अब टेलीविज़न चेनल कल से कह रहे हैं कि चीन वापस गया नहीं है हमने उससे पीछे धकेल दिया। सवाल ये है कि चीन अगर पीछे धकेल गाया तो चीन आ कहाँ से गया था क्योंकि प्रधानमंत्री ने तो इससे इनकार किया। कितना अंदर अगया था के उससे धकेल गया? चीनी मीडिया केह रहा है कि शांतिपूर्वक सारा काम हो गया। प्रश्न उठता है जो चीज़ चीन के लिए शांतिपूर्वक है इसका मतलब वो हमारे लिए शांतिपूर्वक सम्पन्न हुई ये आसान नहीं हुआ होगा। ये सवाल हम इसलिए खड़े कर रहे हैं क्यों कि हमारा मीडिया जीसस तरीक़े से चीन के ख़िलाफ़ भारतीय जनता की भावनाएँ भड़का रहा है या जागृत कर रहा है इसका मतलब कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम अपने को तय्यार कर रहे हों चीन से एक छोटे युद्ध के लिए? चीन से युद्ध करना निर्भर तो चीन के ऊपर करेगा, ज़ाहिर है हम हमला नहीं करेंगे। पर हमारी जनता कनफ़्यूजन में आगई है कि कुछ चीजें क्यों की गाईं, जेसे चीन २ किलोमीटर पीछे चला गया ये ख़बर हमारे देश में, हमारे टेलीविजन चेनलाओं ने फेलाई। २ किलोमीटर कहाँ से पीछे चला गया? २ किलोमीटर पीछे अगर वो गया तो क्या वो २ किलोमीटर हमारी सीमा में आगया था? और जिससे फ़िंगर ४ और फ़िंगर ८ कहते हैं जहां पर हम अब तक गश्त लगा रहे थे वो जगह हमारे हाथ से निकल कर के वो बफ़्फ़र ज़ोन दोबाल साहाब ने कल बना दी चीन के विदेश मंत्री से बात कर। अगर वोह बफ़्फ़र ज़ोन थी जो हमारे क़ब्ज़े में थी इसका मतलब गणित लगाने पर संदेह पेदा होता है की चीन जहां था, चीन वहीं है हम पीछे हटे। ये सारे सवाल बचकाने सवाल हैं क्योंकि टेलीविजन चेनलों के रिपोर्ट को अगर हम देखें तो हम पाएँगे की हम १००% जीते हैं, हमारी जीत हुई है। और भविष्य की भी सम्भावना हमारे टेलीविजन चेनलों ने इस्स देश के लोगों में भर दी है के अब चीन आर्थिक मोर्चे पर भी परास्थ हो चुका है और सैनिक मोर्चे पर भी परास्थ होचुका है क्योंकि अमेरिका हमारे समर्थन में हिंद महासागर में भी आगया है, वो साउथ चीन-सी में भी आगया है। वो अब चीन के ऊपर हमला कर सकता है अगर चीन ने भारत की तरफ़ एक भी कदम बड़ाया। दूसरी तरफ़ पाकिस्तान और नेपाल हैं, वो चीन के साथ खड़े हुए हैं। इन सारी उलझनों के बीच में एक सवाल ये है के क्या हमारे विदेश मंत्री एस-जयशंकर इस्स पूरे दुवंध में असफ़ल साबित हुए हैं? क्योंकि एस-जयशंकर का सिर्फ़ एक बयान आया कि हमारे सैनिक, जो चीन से बात करने के लिए शुरू में बात करने के लिए करनाल संतोष बाबू के साथ जो दो हवलदार गए थे भारतीय सैना के और जिनको चिनियों ने लात घूसों और कील लगी रॉड से या लकड़ी के दंडे से मार गिराया था, उनकी शहादत हुई थी, जिनका ज़िक्र उन्न २० शहीदों में नहीं लिया जाता। उन्न ३ का क्या? वो शहीद नहीं थे क्या? ये छोटे छोटे सवाल दिमाग़ में इसलिए हैं कि एस-जयशंकर ने एक बयान दिया था के जो हमारे सिपाही गए थे वो निहत्थे नहीं थे उनके पास हथियार थे। अगर हथियार थे तो जब वो मरने के क़रीब थे तब भी वो हथियार क्यों नहीं चलाए? ये थोड़ी थोड़ी वो चूकें हैं जो सरकारी तंत्र कहता है और भूल जाता है के लोग उसमें से अपने अर्थ भी निकलेंगे। एस-जयशंकर असफ़ल हुए, पूरा विदेश विभाग असफ़ल हुआ, और हमारे राष्ट्रिये सुरक्षा सलाहकार उनकी २ घंटे विडीओ कॉन्फ़्रेन्स हुई चीन विदेश मंत्री के साथ, और विडीओ कॉन्फ़्रेन्स ख़त्म होते ही दोनो सरकारों को मिलकर के जो विज्ञप्ति निकालनी चाहिए थी उसके पहले ही घोषणा करदी की ये-ये फ़ैसला हो गाय। अब उसस फ़ैसले में हम अपनी जीत बाता रहे हैं, चीन अपनी जीत बता रहा है। ये लड़ाई चलती रहेगी, पर इस्स लड़ाई में जो और कमाल की चीज़ आइ, जीस पर सोशल मीडिया के ज़रिए पूरे देश में ये बात फेल गई और आज अख़बारों ने उसस चीज़ को दोबारा शेयर किया है कि प्रधानमंत्री जब सीमा पर गए तो जिस असपाताल में गए, वो अस्पताल नहीं था वो कॉन्फ़्रेन्स रूम था और कुछ बिस्तर लगाकर के उसमें स्वस्थ जवानो को बिठाकर उससे अस्पताल का रूप दे दिया गया था। दरसल वो कॉन्फ़्रेन्स हाल पहले प्रचारत होचुका था जब लेफ़्टेनेंट करनाल एम-एस धोनी लेह-लड्डाख गए थे, उनके स्वागत में सेना के जवान उनसे मिलने आए थे क्योंकि धोनी की अपनी क्रिकित की शकसियत थी। उसस चीज़ क्यों दिखा कर के आज सोशल मीडिया के ऊपर कहा जारह है की हमने दुनिया के सामने एक ऐसा लाटक खड़ा कारदिया जहां ना कोई घायल है, जहां ना कोई सेलाइन बोत्तल छड़ी हुई है, ना कोई घायल लेटा है, और ना कोई वेंटिलटर वाहन पर है। मुझे लगता है के ये भारत सरकार से एक बड़ी चूक हुई या रक्षा मंत्रलाए से चूक हुई या भारतीय सैना से चूक हुई। फिर सैना का बयान आया कि वहाँ कौरंटीन करने के लिए हमने उसस कॉन्फ़्रेन्स हाल को बदल दिया और जो घायल सैनिक थे उनके लिए एक वार्ड बना दिया। वार्ड बनाते लेकिन उसमें कुछ तो होता। औकसीजन सिलेंडर होता, वेंटिलेटर होता, सेलाइन होती, कुछ पत्तियाँ बंधी होती हाथ पेर में कहीं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। मैं मानता हूँ कि प्रधान मंत्री मोदी को बहकाने वाले उन्हें ग़लत सलाह देने वाले उनके अपने आस-पास काफ़ी ज़्यादा लोग हैं। अगर प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार ये सोच लिया होता तो शायद वो इस्स नाटक में नहीं फँसते। इन सारे सवालों को अब उठाने का कोई मतलब नहीं है, अब समाए है कि हम अपने को एक सम्भावित युद्ध के लिए मानसिक रूप से तय्यार रखें। दरअसल दो मोर्चों पर युद्ध करना है, एक सीमा के ऊपर और दूसरा अर्थ व्यवस्था के मोर्चे पर। अर्थ व्यवस्था के मोर्चे के ऊपर सरकार के पास कोई ब्लूप्रिंट नहीं है देश के लिए कोई रायें और सलाह नहीं है ठीक वेसे ही जेसे कोरोना को लेकर कि सरकार के पास इस्स देश के लोगों के लिए कोई सलाह नहीं है। कोरोना से लड़ने के लिए सरकार ने देश के लोगों को अकेला छोड़ दिया है, उससी तरीक़े से ख़राब अर्थव्यवस्था से लड़ने के लिए भी सरकार लोगों को अकेला छोड़ रही है। सरकार का मौडाल समझ में आरहा है की उसके पास पेसा नहीं है। जितने पब्लिक सेक्टर हैं या जो भी चीज़ बेची जा सकती है जेसे अब रेल्वे की ज़मीन बेची जा रही है। जो पेसा देने वाले रूट हैं, लाभ वाले जो रेल्वे स्टशन हैं, रेल्वे लाइन हैं, वो बेची जा रही हैं, इनमे कब क्या होगा पता नहीं लेकिन सरकार के पास पेसा आजाएगा, कोएला की खदानें बेची जा रही हैं, हवाई रूट्स बेचे जा रहे हैं, तेल की भारतीय कम्पनियाँ लगभग बेच दी गई हैं। जितने भी पब्लिक सेक्टर हैं वो सिखख होगाए हैं और उन्हें बेचने की तय्यारी चाल रही है और सिखख केसे हुए ये अलग कहानी है। सरकार का आत्मनिर्भर होने का शायद यही सोच है लेकिन देश के लोग इस्स सोच से आत्मनिर्भर नहीं होसकते। देश के लोगों को भी अब बेठकर महात्मा गांधी को याद करना होगा अगर उन्हें आत्मनिर्भर होना है। गांधी जी ने जीसस कुटीर उद्योग की बात की थी और गाँव को स्वावलंबी बनाने की बात की थी की गाँव का कोई व्यक्ति गाँव से बाहर जीविकउपार्जन के लिए ना जाए। गांधी का अर्थशास्त्र इस्स गाँव के लोगों को, देश के लोगों को पढ़ना पड़ेगा। सरकार पढ़े या ना पढ़े, सरकार का ध्यान छोड़ कर सरकार क्या करती है क्या नहीं, हमें अपनी खुद की ताक़त पहचान कर और एक कम्यूल सिस्टम में गाँव के लोग मिलकर के गाँव की ज़मीन को किस तरीक़े से पूँजी के रूप में बदल सकते हैं ये सोचना पड़ेगा।गाँव की फ़सल को पूँजी के रूप में केसे बदल जा सकता है इसके बारे में सोचना पड़ेगा। और ये सोचना इसीलिए ज़रूरी है, अगर हमें आत्मनिर्भर होना है और अगर हम आत्मनिर्भर नहीं होंगे तो अभी किसानो की और बेरोज़गारों की आत्महत्याए और बुरी तरह बढ़ेंगी। इसलिए नौजवानों को और जो भी इस्स देश में साँस लेरहे हैं उन्हें इस्स बात की चिंता होनी चाहिए कि इस्स देश के गाँव आत्मनिर्भर केसे हों और अर्थव्यवस्था केसे खड़ी हो इसको लेकर सोच विचार शुरू हो, सेमिनार शुरू हों। आप इसमें अगर सोचेंगे कि टेलीविजन चेनलस इस्स बहस को चलाएँगे तो आप दिन में सपना देख रहे हैं। ये बेहेस हमें हमारे अपने गाँव में, अपने घरों में चलानी पड़ेगी, अपने परिवार में चलानी पड़ेगी तभी हमारे लिए कोई नया रास्ता या नई सम्भावनाएँ खुलेंगी।

 सरकार ने हमें कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया है | File Type: audio/mpeg | Duration: 926

ये सच है, हमें नहीं मालूम कि COVID- 19 कोरोना वाइरस की क्रोनोलोजि क्या है, ऐनाटोमी क्या है, उसका केरेक्टर क्या है, उसका नेचर क्या है, लेकिन इसके बावज़ूद, बीमारी तो है। अगर साधारण लफ़्ज़ों में कहें तो ये बीमारी, पहले जिस तरह से निमोनिया होता था, उसका बिगड़ा हुआ रूप है। इसीलिए सावधानी ज़रूरी है। मास्क लगाना है तो, मास्क ज़रूर लगाएयें क्योंकि आज ३० देशों से ज़्यादा देशों कि वेज्ञानिकों ने ये बयान दिया है कि ‘ये वाइरस हवा कि ज़रिये इन्फ़ेक्शन फेलाता है।’ फेलाता है या नहीं, ये वेज्ञानिक्यों की बेहस की बात है। लेकिन दोनो स्तिथियों में मास्क का सभी लोग कह रहे हैं। ये मैं इस्स हिसाब से कह रहा हूँ कि, कोई नुक़सान नहीं है। मास्क लगाना या मास्क ना लगाना कोई बहुत बहादुरी की निशानी नहीं है।मेरी मुख्य बात यहाँ से शुरू होती हैं क्यों के मैं आपको कोरोना की ऐनाटोमी और फ़िसियोलोज़ी समझने नहीं आया हूँ बल्के मैं आपसे एक निवेदन करने जा रहा हूँ। मेरा निवेदन ये है कि, बहुत ही दुःख, विनम्रता और तकलीफ़ कि साथ ये बात मैं कह रहा हूँ कि हमारी प्रिये सरकार जिससे हमने चुना था २०१९ में, उसस सरकार ने हमें कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया है। शायद सरकार ये समझ ही नहीं पाई कि इस्स बीमारी से लड़ना केसे है। जब आप बीमारी को एक इवेंट बना देते हैं, तो फिर वो एक दिन- दो दिन का तो इवेंट हो सकता है, लेकिन वो जिंदगियाँ नहीं बचा सकता। ज़िंदगी बचाने कि लिए लोगों को लगातार समझना पड़ता है, उनकी मदद करनी पड़ती है, सहायता करनी पड़ती है और उनकी समझदारी में विकास करना पड़ता है। हमारे देश के लोग ग़रीब हैं, प्यार करने वाले हैं, भोले हैं, उन्न लोगों कि साथ जीसस भाषा में बात करनी चाहिए वो भाषा सरकार ने अपनाई ही नहीं। मैं उसकी भी आलोचना नहीं करता क्योंकि जब जिस सरकार में जितनी ताक़त होगी वो उतना ही काम करेगी या जितनी समझदारी होगी उतनी ही वो रणनीति। प्रश्न ये है के अब हम क्या करें? मुझे इस्स बात पर गेहरा अफ़सोस होता है कि देश का सबसे बड़ा स्वयमसेवी संगठन राष्ट्रिये स्वयंसेवक संघ इस्स मोके पर चुप बेठ है। अगर अभी पूछें या कोई सवाल खड़ा करे तो संघ की तरफ़ से एक लम्बा बयान आएगा कि हमने खाना खिलाया, हमने कम्बल बाटें, यहाँ हमने मास्क बाटें, लेकिन वो दिखाई कहीं नहीं दिए। मैं उनसे ये अनिरोध कर रहा हूँ के राष्ट्रिये विपत्ति है और सरकार इसमें लगभग फैल हो चुकी है। अब लोगों का कर्तव्य है ख़ासकर स्वयमसेवी संघटनो का कर्तव्य है कि वो लोगों को शिक्षित करें और बताएँ की कोरोना नाम के इस्स वाइरस से केसे लड़ा जा सकता है, केसे बचा जा सकता है।मैं संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत से ये अनिरोध करता हूँ के वो सरकार के पूण्डता असफ़ल होजाने की प्रतीक्षा किए बिना अगर सम्भव हो, तो वो तत्काल अपने पूरे समघटन को सिर्फ़ एक काम में लगा दें, भारत की जनता को समझाएँ कि उन्हें क्या-क्या करना चाहिए। इसमें एक भी पेसा खर्च नहीं होगा सिर्फ़ लोगों को ख़ासकर संघ कि लोगों को दरवाजें- दरवाजें जाना पड़ेगा। आज आप राजनीति चोर दीजिए के आप भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में लोगों का दिमाग़ मोड़ें या विरोध में मोड़ेंगे प्रश्न ये नहीं, प्रश्न ये है कि, जान बचाने का। इसलिए मैं श्री मोहन भागवत से कहता हूँ कि तत्काल वो सारे स्वयमसेवकों से जो संघ से जुड़े हुए हैं ये अनिरोध करें की वो एक एक घर में जाएँ और लोगों को बताएँ की उन्हें इस्स बीमारी से बचने कि लिए क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए। वो चाहे हाथ धोना हो, चाहे मास्क लगाना हो, चाहे झुंड में ना निकलना हो, सवेरे सब्ज़ी लेने लोग लोग जूँड में, एक भीड़ में कूद पड़ते हैं और २ रुपए सब्ज़ी उन्हें सस्ती मिल जाए इसके लिए वो कोरोना का रिस्क उठाते है।अगर ये सारी चीज़ें समझाने कि लिए संघ लग जाए, तो मेरा विश्वास है कि जितने बाक़ी स्वयमसेवी संघठन हैं, जो अपने को NGO कहते हैं वो भी इसमें लग जाएँगे और लोगों को समझाएँगे कि कोरोना से केसे लड़ा जाए। सरकार इस्स समाय पूरी तरह लगी है कि वो अस्पताल बनाए और उसमें COVID-१९ के जो बीमार हैं उनका इलाज करे।फिर फ़ोटो आने लगीं हैं कि अब एक हज़ार बेड का नहीं, दस हज़ार बेड का अस्पताल बना है। लेकिन उन्न अस्पतालों में है क्या? अभी जो अस्पताल हैं, उन्न अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं, नर्सें ही नहीं हैं ना मेल ना फ़ेमैल, और जो हैं वो बार बार हड़ताल कर रहे हैं। हड़ताल २ करणो से कर रहे हैं। एक उनका कहना है कि उन्हें किट नहीं मिल रही है जिसी वो अपना बचाव कर सकें। उनके पास मास्क नहीं हैं, ग्लव्ज़ नहीं हैं PPE किट नहीं हैं, सेनिटेजर नहीं है और ये इतना बड़ा सवाल है की अस्पताल खोलने के लिए जिन्हें हम लड़ने कि लिए भेजते हैं उन्हें हम हथियार नहीं देते और डाक्टरों के हथियार बहुत छोटे हैं, दवाइयाँ दूसरे स्थर पे आती हैं। इन सारी चीज़ों के साथ जिस एक चीज़ की कमी देश के अस्पतालों में नज़र आइ वो है - वेंटिलेटर, और वेंटिलेटर हैं ही नहीं। जो वेंटिलेटर ख़रीदे गए उन्मे गुजरात का एक उधाहरण है जिसमें वेंटिलेटर की जो मशीनें ख़रीदी गाईं, ऐसा लगता है ग़ुब्बारों में गैस भरने वाली मशीनें हैं। लेकिन वेंटिलेटर के नाम पे इतना पेसा खर्च होगाय और इस्स अपराध में किसी को सज़ा तक नहीं मिली। टेस्टिंग किट हमारे देश में चीन से आई , हमारे बडेय मंत्रियों के बेटे उसमें शामिल रहे, इतनी बड़ी संखिया में किट आई लेकिन किट बेकार निकल गयी, नक़ली निकल गईं, उनका कोई रिज़ल्ट ही नहीं आरहा, उसमें किसी को सज़ा नहीं मिली। एक ख़बर आई और तज़दीक़ के लिए फ़ोटो आइ के इतनी बड़ी संखिया में वेंटिलेटर भेजे गाये और वेंटिलेटर गुडगाओं में एक गोडाउन में बांध हैं कि वो बेकार हैं, नक़ली हैं। ये सारी चीजें सामने आरहीं हैं और किसी को किसी अपराध के लिए कोई सज़ा नहीं मिल रही है इसका मतलब है, इस्स सरकार ने एक तरफ़ भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है और माफ़ कीजिएगा ये कहने के लिए, दूसरी तरफ़ वो जनता को भाज्ञ के ऊपर छोड़ रही है। इसीलिए आज मैं स्वयमसेवी संस्थाओं से ये निवेदन करना चाहता हूँ, संघ प्रमुख से निवेदन करना चाहता हूँ, आप आगे बढ़ें और बुनियादी समझदारी की बातें आप देश की जनता को बताएँ। बुनियादी समझदारी की बातें और लोग झुंड में ना निकलें, या धार्मिक समारोहों में ना जाएँ, इससे कितनी जानें बच सकती हैं इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं। ये अलग बात है कि जब हमारे यहाँ सिर्फ़ ४०० मरीज़ थे, तब पूरा देश कर्फ़्यू की तरह हमारे प्रधानमंत्री की अपील पर बंद हो गया था, और ये कहानियाँ फेलाई गाईं की अगर ये लाक्डाउन नहीं होता तो देश में कितने मरीज़ होते। उसके बाद लाक्डाउन खुला, लाक्डाउन १, लाक्डाउन २ और पता नहीं कितने लाक्डाउन किए, और नम्बर्ज़ हैं। उनके खुलने के साथ ही साथ जीस तेज़ी से हमारे देश में संक्रमण बड़े, लगा वो सरकार की चिंता का विषये नहीं है।आज सबसे बड़ा दुर्भाग्य, हम चार दिन से कह रहे थे के हम दुनिया में तीसरे नम्बर की लड़ाई में पहुँच गए हैं, सरकार ने ध्यान नहीं दिया, अब आधिकारिक रूप से कहा गया के हम दुनिया में नम्बर तीन हैं कोरोना वाइरस से समकरमण के दौड़ में। तीसरा स्थान हमारा सुरक्षित होगाय अब दो और बचे हैं, और तीसरा स्थान हमने रूस को पछाड़ के लिया है। रूस हमसे पीछे चला गया है हम रूस से आगे आगाए हैं। सवाल सिर्फ़ इतना उठता है, की क्या हम सचमुच नम्बर वन की दौड़ में हैं? आज दुनिया में नम्बर वन पर अमेरिका है। क्या हम कोरोना समकरमण के मामले में अमेरिका को भी पछाड़ना चाहते हैं? और अगर नहीं पछाड़ना चाहते हैं तो सब जो मानवता के समर्थक हैं उन्हें आगे आना होगा क्यों कि सरकार को समझाने से काम नहीं चलेगा, सरकार के पास जितना दिमाग़ है सरकार उससी दिमाग़ से काम कर रही है और ये हम देख चुके हैं। पिछले कुछ सालों में सरकार ने अपने दिमाग़ की बदौलत जो-जो काम किए जिसमें नोट बंदी से शुरू कीजिए और आज कोरोना समकरमण से लड़ने तक आज जितने काम सरकार ने किए और जितने दावे किए उसको लेकर सिर्फ़ हंसा जा सकता है और रोया जा सकता है कि इतनी मामूली समझ जो हिंदुस्तान के साधारण लिखने पाड़ने वाले में होती है उसका भी सबूत हमारी सरकार नहीं दे रही। पर यहाँ सरकार की आलोचना करने का प्रश्न नहीं है। सरकार से अपेक्षाएँ तोड़ने का, सरकार से अपेक्षाएँ बंद करने का समाए है। ये जीवन का सवाल है, और जीवन के सवाल में सरकार आपका साथ ना दे तो उसका मतलब ये नहीं कि हम मरने के लिए विवश होजाएँ। हमें चाहिए के हम अपने स्तर पर कोरोना से लड़ने की रणनीति बनाएँ और वो सारे साधन अपने घरवालों को, अपने पड़ोसियों को, अपने मोहल्लेय के लोगों को, अपने दोस्तों को समझाएँ जिससे हम कोरोना समकरमण से बच सकते हैं। और कोरोना समकरमण अगर किसी को हो ही जाए तो हमें अपने पड़ोस के केमिस्ट के ऊपर ज़्यादा भरोसा करना चाइए ना के किसी अस्पताल के। अगर अस्पताल आप पहुँच गए तो आप लुट्ट जाएँगे। एक दिन का, एक से देड़ लाख रुपए चार्ज है। और जाह नहीं हो रहा है वहाँ लोग मर रहे हैं, और जाह मर रहे हैं, उसका कारण काग़ज़ में भी हाथ में नहीं आपाता। दिल्ली में तो ग्रह्मणती को कहना पड़ा की लाशों के साथ बदसलूक नहीं हो रहा है, इसलिए अब लाशों को उनके घरवालों को देने की बात करनी चाइए।लाशों को अगर घरवालों को दे भी दें तो एक इतना विभाग्या केस हमारे सामने आया है के, माँ की मौत होगई कोरोना से, बेटे ने शव को ना कंधा दिया ना आग लगाई। उससे लगा उससे भी कोरोना होजाएगा। काश उसकी माँ ने सोचा होता बचपन में, के ये बेटा आगे जाकर के ऐसा सलूक करेगा। इसीलिए मेरी अपील है, प्रराथना है, कि हम लोग खुद समझें और अंत में स्वयमसेवी संस्था से और खससकर प्रमुख मोहन भागवत तये करें कि अपने सारे स्वयमसेवकों को, लोगों को समझाने के लिए निकालना है और सिर्फ़ इसीलिए कि सरकार इस्स सवाल के ऊपर अस्वर्ग होगई है।

 चौथी दुनिया की २०१६ की स्टोरी हुई सच "बेहोश प्रधानमंत्री भारत सरकार की जासूसी" | File Type: audio/mpeg | Duration: 1061

हम बहुत तकलीफ़ के साथ यह रिपोर्ट लिख रहें हैं। १८ से २४ अप्रैल २०१६ में चौथी दुनिया ने अपनी लीड स्टोरी में, जिसका नाम था 'बेहोश प्रधानमंत्री’ निचे मोटे में था 'भारत सरकार की जासूसी’, यह हमने बहुत सोच समझ कर स्टोरी की थी। काफ़ी रीसर्च इसके ऊपर हुई थी। सेना की, और जासूसी ऐजेंसियों की ख़बरों के आधार पर यह स्टोरी, हमारे इन्वेस्टिगेटर एडिटर ने की थी। उसमें हमने कहा था, ’हचिसन - शाओमी ने कराई भारतीय सेना और सुरक्षा तंत्र की जासूसी। यह हमने प्रथम प्रष्ट पर ही लिखा था। दूसरा लेख हमने लिखा, ‘भारतीय सेना ने स्मार्टफ़ोन पर और स्मार्ट ऐप्स पर लगाई पूर्ण रोक’। तीसरे लेख में हमने विषय पकड़ा, ’ISI को पठानकोट बेस की महत्पूर्ण सूचनाये चीन ने दी थी’। आप ध्यान दीजिये पठानकोट पर जो इतना बड़ा हमला हुआ था, हमने उसके बारे भारत सरकार को लीड दी थी। हमने ये साफ़ लिखा था की, ISI को पठानकोट की महत्पूर्ण सुचना चीन ने दी थी, इसका मतलब, यहाँ की जासूसी चीन के द्वारा हो रही थी और चीन पाकिस्तान को सुचना दे रहा था। हमने यह भी लिखा की ‘थल, वायु और नवसेना में नहीं होगा किसी भी स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल’, डिफ़ेंस ने यह आदेश दिया था इसलिए हमने ये लिखा, लेकिन वहाँ फ़ोन का इस्तेमाल होता रहा। फिर हमने हैडिंग में यह लिखा की ‘वायुसेना की रिपोर्ट पर भी सोई रही नरेंद्र मोदी की सरकार’। उस समय वायुसेना तीनो सेनाओं में पहली थी, जिसने सरकार को एक रिपोर्ट दी थी की आप चीनी फ़ोन का इस्तेमाल रोकिये, हमारे देश की जासूसी हो रही है। पर २०१६ में हमारी केंद्र सरकार सोई रही । डिफ़ेन्स ने अर्ध सैनिक बलों से भी इसका कड़ाई से पालन करने के लिए कहा था, लेकिन अरध सैनिक बलों में भी इसका कड़ाई से पालन नहीं हुआ। हम इस सवाल को आज इस लिए उठा रहें हैं, कि आज देश में जो भी हो रहा है,जिस तरह से apps पर बंदिश लगा रहें हैं, जिस तरह से मोबाइल फ़ोन का ज़िक्र कर रहें हैं, लकिन बहुत सफ़ाई से नहीं कर रहें हैं। एक बार सरकार ने यह ५९ Apps की लिस्ट निकाली , की इनको हम प्रतिबंदित करते हैं, फिर उसके बाद सरकार ने अपना स्टेप बदल दिया और उन्होंने एक नोटिस जारी कर दिया की क्यों ना आप को प्रतिबंदित कर दिया जाये। आप के जो app हैं, वह भारत के सुरक्षा और सम्प्रदा के ख़िलाफ़ हैं । यह डाईलूट करने की कोशिश हुई लेकिन मुझे नहीं लगता की देश के लोगों ने इन Apps को कहीं से भी हटाया गया है। अगर सरकार एक बार चेकिंग करती तो सरकार के पास यह जानकारी आजाए, यह एक छोटा टेक्निकल एक्सपर्टीज़ है की आप देख सकते हैं की देश में कितने मोबाइल के ऊपर चीनी app अभी भी चल रहें हैं । मेरा ख्याल है ८०% मोबाइल में ये अभी भी चल रहा है। सरकार को २०१६ में हमारे द्वारा दी गयी इस जानकारी को कुछ भी तरज़ी नहीं दी गई । हलाकि हमारे दफ़्तर में IB और सीबीआई के लोग आए और कहा यह जानकारी आपको कहाँ से मिली? हमने उनसे कहा की यह जानकारियाँ तो आपके पास होनी चाहिये थीं। हमें कहाँ से मिली यह हम आपको जानकारी नहीं दे सकते, लेकिन यह जानकारी है और इस जानकारी के साथ हम खड़े है। उन्होंने कहा की ‘आप बिलकुल सही कह रहें हैं, हमे इसकी जानकारी नहीं थी’। वो शायद ३ या ४ अफ़सर थे, वह हमारे यहाँ से चले गए। उसके बाद इस कांड में कुछ नहीं हुआ क्योंकि ये सब अभी २०२० तक चलता रहा। हमने उस समय बहुत सारी चीज़े उस स्टोरी में कहीं थी। "एक वैम्पोआ है- भारत के लिए एक खतरनाक वैम्प की तरह है" यह हमने स्टोरी की थी। उसमे रॉ के अधिकारी से हमको जानकारी मिली थी जिसको हम आपको बताना चाहेंगे।वो जो रॉ के अधिकारी थे, उन्होंने बताया कि हचिसन वैम्पोआ कंपनी भारत के लिए खतरनाक वैम्प हैं।हचिसन वैम्पोआ और शाओमी काफ़ी क़रीब हैं । और एशिया में साजा कारोबार करते हैं । हच के नाम से भारत में हचिसन का कारोबार था लेकिन उसने भारत में व्यापार का अधिकार वोडाफ़ोन को बेच डाला। भारत सरकार ने कभी इसकी छान बीन नहीं कराइ की संचार का सहारा लेकर हचिसन कंपनी भारत में क्या क्या धंदे करती रही और अचानक काम समेट कर क्यों चली गयी? हचिसन कंपनी अरबो रुपए का कैपिटल गेन टैक्स हड़प कर चली गयी। इस पर किसी को कोई दर्द ही नहीं हुआ। ऐसी ताक़तें भारत की रिड में किस हद तक घुसपैठ कर चुकी है, इससे आसानी से समजा जा सकता है। हचिसन वैम्पोआ के मालिक, ली-का-शिंग के चीन के सरकार , चीन की सत्ता और चीन की सेना यानी PLA से गहरे सम्बंद है । ली-का-शिंग की कंपनी हचिसन वैम्पोओ , चीन सेना की साइबर रेजिमेंट के साथ मिलकर साइबर वॉर्फ़ेर और साइबर जासूसी के शेत्र में काम करती रही है। चीन के कम्युनिस्म का सच यही रहा है की चीन की सेना दुनिया भर में फैली कयी नामी कॉर्पोरेट कंपनियों की मालिक है या हचिसन वैम्पोआ जैसे कॉर्पोरेट घरानो के साथ मिलकर करती है। इस तरह चीन की सेना दुनिया भर में जासूसी भी करती है और धन भी कमाती है। हचिसन वैम्पोआ और चीन की सेना ने पाकिस्तान , श्रीलंका , बांग्लादेश समेत दुनिया के तमाम देशों के बंदरगाह अपने हाथ में ले रखें हैं । बंदरगाहों का काम हचिसन पोर्ट होल्डिंग HPH के नाम से किया जा रहा है। बंदरगाहों के ज़रिये हथ्यारों की आमदरफ्त बेधड़क तरीक़ों से होती रही है। हचिसन वैम्पोआ लिमिटेड के चेयरपर्सन, ली-का -शिंग, सेना के लिए बड़े कारोबारों में बिचोले की भूमिका भी अदा करते हैं । अमेरिका की हियूज कारपोरेशन और चीन- हांगकांग सॅटॅलाइट, चीन सेट के बीच हुए कई बड़े सॅटॅलाइट करारों में, ली-का-शिंग ने अहम् भूमिका अदा की थी। यहाँ तक की चीन सेट और एशिया सेट में अपना धन भी लगाया। चीन सेट और एशिया सेट कम्पनियाँ, चीन सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की कम्पनियाँ हैं । इसी तरह, चीन ओसिन्स शिपिंग कंपनी भी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की है जिसमे हचिसन - वैम्पोओ लिमिटेड का धन लगा हुआ है। लीबिया , ईरान , ईराक़ और पाकिस्तान समेत कई देशों में आदुनिक हथ्यारों की तस्करी कॉस्को की लिप्तता कई बार उजागर हो चुकी है। खुक्यात आर्म्स डीलर और अत्याधुनिक हत्यार बनाने वाली चीन की पॉलिटेक्नोलॉजी कंपनी के मालिक वांग-जुंग और हचिसन कंपनी के मालिक ली-का-शिंग के नज़दीकी सम्बंद हैं । पॉलिटेक्नोलोजी का संचालन भी PALA द्वारा ही होता है। चीन के प्रतिश्ठित चीन इंटरनेशनल ट्रस्ट इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन में, वांग-जुंग और ली-का-शिंग दोनों मुख्यत हस्तिया बोर्ड के ममेम्बर हैं। हमने उस समय बहुत विस्तार से बताया था की चीन कितना खतरनाक है, लेकिन सरकार ने इसके ऊपर ध्यान नहीं दिया। हमने शिओमि और रेडमी स्मार्टफ़ोन पर पाबन्दी की जो मांग की थी उसे तो छोड़िये, उसके नए नए संस्करण और मॉडल बाजार में उतारे गए हैं । बड़े ज़ोर-शोर से इन फ़ैनस के विज्ञापन भी दिखाय जा रहें हैं । हचिसन और शिओमि की एशिया की साझीदारी के बड़े बड़े समाचार प्रकाशित कराये जा रहैं हैं । यह सब हमारी सरकार के जानकारी में हमारे देश में हुआ। स्मार्टफ़ोन और एप्लीकेशन के लिए जासूसी की बात खुलने पर पता चला की स्मैश ऐप जैसे मैसेंजर एप्लीकेशन के ज़रिये यूज़र का पूरा डाटा ख़ुफ़िया एजेंसी पाकिस्तान की ISI को मुहैया कराया जा रहा था। स्मैश ऐप का सर्वर जर्मनी में था जिसे कराची में रहने वाला पाकिस्तान का एजेंट साजिद राणा PBXMOBIFLEX.COM के नाम से चला रहा था। इस एप्लीकेशन की तकनीक चीन द्वारा डेवेलप की गयी थी। इससे इतना शातिराना तरीके से तैयार किया गया था की उसे डाउनलोड करते ही यूज़र के फ़ोन में दर्ज सारे डिटेल्स SMS , रिकार्ड्स , फोटो , वीडियो यहाँ तक की किन लोगो से उनकी बाते हो रही है उनकी पूरी रिकॉर्डिंग भी सरवर को मिल जाती था। इस तरह शिओमी और रेडमी फ़ोन द्वारा भी यूज़र डाटा में स्तापित सरवर को भेजे जा रहे थे। मैं इस पूरी स्टोरी को यहाँ इसलिए दुबारा आपके सामने रखने की कोशिश कर रहा हूँ, ताकि आप देखें हमने भारत सर्कार को २०१६ में जो सूचनाईए दी थी भारत सरकार ने उसके ऊपर कोई काम नहीं किया बल्कि भारत सरकार से जुड़े लोग चीन से स्पोंसरशिप तलाश करने लगे और उनसे पैसे लेने लगे। अब राजनैतिकियो में कौन-कौन पैसे ले रहा है यह एक दूसरे के ऊपर आरोप लगाने वाले लोग इस बात को खोल रहें हैं । कोई कोंग्रेस को खोल रहा है, कोई बीजेपी को खोल रहा है, कोई PM केयर फंड को खोल रहा है , कोई RSS को खोल रहा है। हो सकता है की वियक्तिगत भी बड़े फ़ायदे किसी ने लिए हों, पर मुझे सिर्फ़ इतना लगता है की क्या हमारे बिच में से देश का कॉनसेप्त ख़तम हो गया है? जब हमने कहा की पठानकोट जैसे आतंकी हमलो में श्याओमी और रेडमी स्मार्टफ़ोन की वजह से जासूसी हुई, सरकार ने उसके ऊपर कोई दयँ नहीं दिया। हमसे आकर जानकारी भी ली, लेकिन उस जानकारी के ऊपर कोई काम नहीं किया और अब एक नाटक हो रहा है इनको बंद करने का और मैं इस बात पर बिलकुल निश्चित हूँ की किसी भी तरह से हम चीन से दूर नहीं जा सकते। चीन के जितनी बड़ी कंपनियाँ हैं, वह भारत में इतना इन्वेस्ट कर चुकीं हैं, कि भारत सरकार उससे बहार नहीं जा सकती। बैंक ऑफ़ चीन हमारे यहाँ काम कर रहा है। हमारे यहाँ हर शेत्र में चीन का ६० से ७० % ड़खल है। हमारा बज़ार ६० % चीन के हाथों में है। हमारे यहाँ पर हर चीज़ो में चीन कंपनियों का इन्वेस्टमेंट है। यहाँ तक की PAYTM अलीबाबा के क़ब्ज़े वाली कंपनी है जिससे भारत सरकार की सहमति से पहले वह भारतीय सहमित वाली कंपनी थी। PAYTM भारत सरकार की सहमति से और उनकी राय से अलीबाबा को इसमें शामिल किया गया। हमारा पूरा फ़ाइनेंशियल कंण्ट्रोल इस समय अलीबाबा के पास है। बैंको में सारे सरवर चीन के लगे हुए हैं । सूचना के सारे सरवर चीन के लगे हुए है। सेना में चीन बुलेट प्रूफ़ जैकेट का ही इस्तेमाल नहीं हो रहा है, बल्के सेना में चीन का फ़ोन है जो डे-टू -डे की जानकारी चीन में दे रहा है और चीन पाकिस्तान को दे रहा है। और अब मेरा ख़्याल है की चीन , पाकिस्तान और नेपाल मिलकर भारत को तीनो तरफ़ से घेर रहें हैं । उन्हें जासूसी के लिए कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है । उन्हें चीन की तरफ़ से उन्ही उपकरणों ज़रिये सुचना मिल रही है जिन उपकरणों से भारत सरकार ने बड़ी शान के साथ हिंदुस्तानी लोगो के हाथों में उपलब्ध कराया। चीन फ़ोन हर भारतीय के हाथ में, मुकेश अम्बानी की कंपनी JIO फ़ोन ने दे दिया। अडानी साहब चीन से ९ हज़ार करोड़ या ९० हज़ार करोड़ का एक फाइनेंशियल डील कर चुके हैं। तो, जब हमारे यहाँ के बड़े पूंजीपति और हमारे यहाँ के ही बड़ी अदिकारी चीन के दिए हुए स्पोंसरशिप से या चीन के दिए हुए फाइनेंशियल के लिए काम करेंगे, तो हम चीन से कैसे लड़ पाएंगे। आखिर में, मैं एक सवाल खड़ा करता हूँ अमिताभ बच्चन , सलमान ख़ान , शाहरुख ख़ान जैसे लोग चीन के प्रोडक्ट का प्रचार कर रहें हैं । किसी ने नहीं कहा है की हम इन प्रोडक्ट्स को छोड़ेंगे। उसी तरीके से BCCI जो क्रिकेट के टूर्नमेंट कराती है उसके ज़िम्मेदार है। वो चीन की स्पोंसरशिप नहीं छोड़ रही है। सरे शोर के बावजूद नहीं छोड़ रही है। प्रधान मंत्री आज ३ तरीक़ को सीमा का दौरा कर कर रहें हैं और उस जगाह गए है, गलमां घाटी में जहा पर हमारे २० जावानो की शहादत हुई।वह शायद वहाँ घायल जवानो से बात चित भी करके आएंगे। पर प्रश्न दूसरा है । प्रश्न यह है, कि हमारे यहाँ उनका टेंट लग कैसे गया? हमारी ज़मीन पर हमारी सेना वह थी, सारे उपकरण थे, लेकिन उनका टेंट हमारे यहाँ लग गया जिसे उखाड़ने के लिए हमारे मंत्री जनरल V K Singh कहतें हैं की ‘उस टेंट को देखने, की उसमे क्या रखा है, विसपॉर्ट हो गया, जिसकी वजह से झड़प हो गयी’। लेकिन दूसरी ख़बर आयी है की हमारे आँख की आगे देखते देखते चीन ने अपना एयरबेस बना लिया। गलवान वैली में ही यह एयरबेस कैसे बना इस ख़बर को विदेशी समाचार एजेंसियों ने तो सब के सामने रखा, लेकिन हमारे देश में इस ख़ बर को क्यों दबा दिया गया? अब हमारा सवाल है, क्या सचमुच चीन ने वहां एयरबेस बना लिया है? अगर बना लिया है तो, हमे यह मान्ना चाहिए की सिफ़ गलवान वैली ही नहीं, लद्दाख भी आज ख़तरे में है। इसकी रक्षा करने की ज़िम्मेदारी देश की सरकार की है , देश के लोगों की है , देश के प्रधानमंत्री की है। पर अगर टेलीविज़न चैनलों के ज़रिये यह लड़ाई लड़ी जाएगी, तो मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम ग़लत ख़बरों के आधार पर खुश होते रहेंगे और हमारे वाइटल पॉइंट्स की सुरक्षा हमे जहां कड़ी करनी चाइए वह सुरक्षा हम कड़ी नहीं कर पाएंगे। क्योंकि टेलेविज़न चैनल सरकार की सुचना की आधार पर काम और अपनी कल्पना की ऊपर ज्यादा ख़बरे दे रहे है। सारी ख़बरे ऐसी आ रहीं हैं, जैसे यह ज़ीरो पॉइंट पर हों । सब लेह-लद्दाख के होटलों में बैठे हों। बहराल मैं पत्रकारों के ख़िलाफ़ नहीं जा रहा हूँ। जो देश भक्त पत्रकार है उनका एक नज़रिया है, जो देशद्रोही पत्रकार है उनके एक नज़रिया है। पर मैं सिर्फ़ यह मांग दुबारा करता हूँ की हमने जो २०१६ में जो स्टोरी की थी ‘बेहोश प्रधान मंत्री’ उससे हम दुबारा पूरा का पूरा छाप रहें हैं और हम चाहेंगे की देशवासी देखें ,की हमने जो लिखा २०१६ से २०२० तक कितना सही साबित हुआ और २०२० में भी सरकार उसका नोटिस नहीं ले रही है। हमारे देश की जासूसी जैसे हो रही थी, अभी भी वैसे ही होती जा रही है।

 हम ये जानना चाहते हैं की बिना साधनों के वैश्विक अर्थव्यस्था में देश आत्मनिर्भर केसे हो सकता है | File Type: audio/mpeg | Duration: 1200

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 समय आ गया है कि हम अपने देश में चल रहे सिस्टम के बारे में सोचें। | File Type: audio/mpeg | Duration: 917

सिस्टम,जिसे हिंदी में व्यवस्था कहते हैं और व्यवस्था का मतलब प्रधान मंत्री से लेकर एक क्लर्क तक का काम है। जिसमे पुलिस आती है, सेना आती है सभी इस देश के वह लोग आते हैं या वह संस्थाएँ आती हैं जिनके काम करने का या ना करने का देश के ऊपर प्रभाव पड़ता है। इस कोरोना संकट के समय हमने देखा, हमने बहुत तारीफ़ भी की क्यूंकि उस समय शुरूआती समस्याएं बहुत ज्यादा थीं लोगो को उत्साहित करने की ज़रूरत थी पर अब जब हम देखते हैं, तो हमे दिखाई देता है की हमने जिनकी तारीफ़ की उन्होने पूरा काम नहीं किया। बहरहाल सबसे पहले जिन अधकारियों को पूर्वानुमान लगाना था के कोरोना अगर आया है तो क्या क्या करना चाहिए और इसकी कैसे सावधानी करनी चाहिए जिसमे शायद स्वस्थ्य मंत्रालय का अहम् रोल होता लेकिन वह किसी के किया नही। जब 30 जनवरी को हमरे देश में पहला कोरोना का संक्रमित व्यक्ति केरल में मिला। हमने नमस्ते ट्रम्प का आयोजन किया और भारत सरकार के अधिकारियो ने प्रधानमंत्री को ये नहीं चेताया कि हम नमस्ते ट्रम्प का आयोजन कर रहे है,इतने लोगो को इकट्ठा कर रहे है तो क्या इससे कोरोना महामारी फैल सकती है। एक दूसरे को संक्रमण लग सकता है। क्यूंकि उस समय तक हमारे पास चीन का और इटली का उदाहरण मौजूद था और कई देशों ने लॉक डाउन लगाने की शुरुआत कर दी थी। हमारे देश के अधिकारी या प्रधान मंत्री के जो सलाहकार थे उन्होने इसका क़तई अनुमान नहीं लगाया और जब 24 मार्च को सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की जिसे प्रधानमंत्री ने कहा की यह कर्फ्यू ही है,कर्फ्यू जैसा है| प्रधान मंत्री का यह कहना और एकदम देश का बंद हो जाना यह उन्होने किसी की सलाह पर तो किया होगा। जिन लोगो से उन्होने सलाह ली होगी वह यह अनुमान क्यों नहीं लगा पाए कि इसका परिणाम अगले 1 महीने में क्या निकलने वाला है। उन्हे मालूम है कि हमारे देश में 20% लोग ही ऐसे है मध्यम वर्ग के जो किसी तरह से अपनी व्यवस्था कर सकते हैं, बाकि 70% लोग ऐसे हैं जो परेशान हो जाएँगे जिनकी परेशानी हमने देखी| गरीबो की, मज़दूरों की, वंचितो की, सामाजिक दर्जे के सबसे निचले तबक़े को छूने वाले वर्ग की। लोगो को ना खाने को मिला,ना उनको राशन पहुँच पाया, ना उन्हें अपने घर लौटने की, भूख से मौत ना हो जाए उससे बचने के लिए अपने गाँव लौटने के लिए न कोई सुविधा सरकार ने मुहैया कराई| बयान आते रहे,हर एक ने बढ़-चढ़ कर बयान दिया, ऐसा लग रहा था कि उस दौर में बयान देने वालो में एक प्रतिस्पर्धा चल रही है, competition हो रहा है| इसके बाद प्रधान मंत्री को जिन्हीने भी सलाह दी की अब लॉकडाउन धीरे धीरे ढीला करना चाहिए,वह यह अंदाज़ा नहीं लगा पाए जो उन्हने लगाना चाहिए था कि लॉकडाउन में अगर कोरोना इस रफ़्तार से बड़ा है तो अगर लॉकडाउन खुलेगा तब कोरोना का संक्रमण किस रफ़्तार से बढ़ेगा। जिसका पहला सिग्नल तब आया जब सारे देश में शराब बैचने का फैसला सरकारों ने लिया, ज़ाहिर है केन्द्र की राय पर लिया होगा, अब जिस तरह से लोग सड़कों पर टूटे, अगर यह संक्रमण की बीमारी है जिसको कि प्रधानमंत्री ने बताया, डॉक्टर बता रहे है, विदेशो से भी खबर आ रही है की संक्रमण से बचने के लिए हाथ धोएँ , मास्क लगाएँ , सोशल डिसटेनसिंग रखे जो की गलत शब्द है,शारीरिक दूरी (individual distancing) की बात होनी चाहिए कि लोग समझते उसको, लेकिन यह भी किसी ने अंदाज़ा नहीं किया कि लोग अगर नहीं समझेगे तो क्या होगा और वही हुआ। लोग इस सारे चीज़ को नहीं समझे और चाहे वह मंदिर हो, मस्जिद हो हर जगह पर लोग इकट्ठा होना शुरू हो गए। बड़े बड़े जुलूस निकले रथ यात्राएँ निकली। निज़ामुद्दीन मरकज में इतने दिनों तक एक समागम होता रहा जिसकी वजह से कोरोना फैला और सारा दोष मुसलमानो पर आ गया, जबकि इस देश में अभी तक यह अकड़ा जान-बूझ कर उपलब्ध नहीं कराया गया कि इस समय देश में कितने मुस्लिम संक्रमित है और कितने हिन्दू संक्रमित है। ज़ाहिर है मुसलमानो से हिन्दू नहीं संक्रमित हुए होंगे क्यूंकि नज़दीक संक्रमण तभी होता है जब आप हाथ मिलाएँ नज़दीक रहें, आप की साँस एक दूसरे को छुए वह अकड़ा नहीं है हमारे पास। मैं सिर्फ़ यह कह रहा हूँ जो हमारे यहाँ व्यवस्था को चलाने वाला दिमाग़ है वह दिमाग़ बहुत समझदारी का दिमाग़ नहीं है। बहरहाल हमारे देश में डॉक्टर , नर्स उन्हें हथियार नहीं दिए गए (हथियार का मतलब ग्लव्स नहीं दिए गए , मास्क नहीं दिए गए , सेनेटाईज़र नहीं दिया गया) पुलिस को नहीं दिया गया , सेना को नहीं दिया गया और जिस देश में वो सारे लोग संक्रमिक होने लगे जो सीधे लोगो के संपर्क में नहीं आते जैसे पैरामिलिटरी फ़ोर्स, ITBP , CRPF , सेना, इन सब में कोरोना कहाँ से पहुँच गया| इसका मतलब है कि कही न कही कुछ झोल है। कहीं न कहीं छेद है, जिस छेद से कोरोना इन जगहों पर भी पंहुचा और फिर सरकार को सबसे ज़्यादा प्राथमिकता उन लोगो को देनी चाहिए थी जो कोरोना से सीधे लड़ रहे हैं जैसे डॉक्टर हैं , नर्स हैं, उनके पास दवाएँ तो है ही नहीं, क्यों कि दवाई तो इसकी कोई बनी ही नहीं| लेकिन सामान्य दवाई भी होनी चाहिए थी वह नहीं थी सबसे बड़ी चीज़ इन डॉक्टरों के पास ग्लव्स तक नहीं थे और उस समय भी लोगो ने यह अंदाज़ा नहीं किया कि कोरोना से जो मौते होंगी उन लाशो का क्या होगा ? क्यों कि तब तक यह देखा जा चूका था कि इटली और रुस में लाशों को दफ़नाने के लिए भी लोग उपलब्ध नहीं हो रहे थे। हमारे देश में क्या स्थिति होगी यह सोचना व्यवस्था को चाहिए था यानी सरकार को सोचना चाहिए था, सरकार के अधिकारियो को चाहिए था, उन्होंने नहीं सोचा। इसी तरह से, सरकार ने यह नहीं सोचा कि अगर इस कोरोना कि महामारी में जिस तरीके से मज़दूर सड़को से अपने गांव पहुँच रहे है गांव में भी संक्रमण फ़ैल सकता है| अगर शुरू के ही महीने में जब लॉकडाउन मार्च में लगा था अगर तभी से 1 महीने के भीतर सिर्फ रैल ही चला दी जाती, जिसकी लोग माँग कर रहे थे, सलाह भी दे रहे थे, लोग अपने अपने यहाँ चले जाते ज़्यादातर लोग उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखण्ड और बंगाल के थे दक्षिण में आंध्र और तेलंगाना के थे लेकिन उन लोगो के लिए कोई व्यवस्था सरकार ने नहीं सोची कि सिर्फ़ रेल चला देते लेकिन बयान देते रहे। रेल मंत्री ने बयान दिया हमने 1800 के करीब रेलें चलाईं और वही रेल मंत्रालय कह रहा है 360 रेलें चलाई यह लोगो के साथ लोगो को भरमाने का जो खेल चला उस खेल ने बताया कि हमारी ब्यूरोक्रेसी, हमारे सिस्टम को चलाने वाले लोग कितने कम दिमाग़ के हैं। फिर कोरोना एक भ्रष्ट्राचार का कारण बन गया। हॉस्पिटल में 6 लाख, 7 लाख,8 लाख का पैकेज बड़े हॉस्पिटलों में, छोटे हॉस्पिटलों में जगह नही। सबसे पहले जो चीन से टेस्ट किट आई कितनी संख्या में आई इसका पता नहीं, लेकिन सारे देश के लिए खरीदी गई और उसमे इतना बड़ा भ्रटाचार हुआ कि ICMR ने खुद अपने द्वारा दिए गए आर्डर की आलोचना कर दी और कहा की टेस्ट किट इस्तेमाल नहीं होगी। बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों ने इस टेस्ट किट का इस्तेमाल करने से मना कर दिया तब अचानक लोगो को लगा की और भ्रटाचार का खुलासा होगा क्यूंकि वह टेस्ट किट ऐसी थी अगर आप नेगेटिव है तो पॉजिटिव बत्ताती थी और पॉजिटिव है तो नेगेटिव बत्ताती थी। इसके बाद मास्क की ख़रीदी में भ्रष्टाचार, पीपीइ किट की में भ्रष्टाचार। दिल्ली की गलियों में मेरठ की गलियों में पीपीइ किट सिली जा रही थी। टेलीविज़न चैनल्स ने इसको दिखाया, सोशल मीडिया ने इसको दिखाया, लेकिन सरकार ने कोई इसके ऊपर एक्शन नहीं लिया। कुल मिला कर के कोरोना इस देश में मौत का और भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया। एक सवाल है की कोरोना आने से पहले जितने भी सरकारी हॉस्पिटल थे वह लोगो से भरे रहते थे औरतो की बीमारी हो , बच्चों की बीमारी हो , बुज़ुर्गो की बीमारी हो, अस्थमा हो , ब्रांकाइटिस हो कुछ भी हो, कोई भी बीमारी हो, दिल की बीमारी हो, टी बी हो, कैंसर हो, हॉस्पिटल भरे रहते थे, इनसे भी तो मौते होती थी लेकिन जब से यह कोरोना चला है तब से इन मौतों का आंकड़ा गायब हो गया। दो चीज़े हो सकती है या तो यह बीमारियाँ नकली थी, लोग ज़बरदस्ती हॉस्पिटलों में जाते थे गोली लेने के लिए। एक मनोवैज्ञानिक बीमारी से सारा देश ग्रसित था या फिर इनसे जो मौते हो रही है वह कोरोना में बताई जा रही है। क्यूंकि कोरोना में जितनी मौते होंगी विदेशी सहायता उतनी ही आएगी। इस देश के लोगो को यह नहीं पता की हमने कोरोना में खर्च कितना किया, सरकार ने कह दिया की हम नहीं बताएँगे कोरोना को लेकर हम क्या कर रहे है इसलिए मुझे यह लग रहा है कोरोना हमारे यहाँ एक ऐसा अवसर हो गया है जिसमे जिसे देखो वही अपनी लूट का हिस्सा उसमे से ले रहा है। मैं वह चर्चा ही नहीं करता की 70 सालो में इस देश में शिक्षा क्यों ऐसी हो गई, स्वस्थ्य क्यों ऐसा हो गया, हॉस्पिटलों की 70 सालो के बाद कमी क्यों आ गई, किस प्रधानमंत्री के समय या किस पार्टी के समय कितने हॉस्पिटल बने, क्यूंकि इस समय तो हॉस्पिटलों की जगह नहीं है, तो स्टेडियम में और टेंटो में हॉस्पिटल चलाए जा रहे है। पहली बार यह पता चला की इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर के या बुनयादी सुविधाओं को लेकर के जो सरकारों ने नहीं किया उसका भुगतान जनता को भुगतना पड़ा और पड़ रहा है। इसलिए मुझे यह लगता है की अब सोचने का वक़्त आ गया है की हमारा सिस्टम कैसे लोगो के प्रति ज़िम्मेदार हो। सरकार कैसे लोगो के प्रति रेस्पॉन्सिव हो और फिर जिन लोगो ने यह तय किया की जितनी भी भारत सरकार की बड़ी कंपनियाँ है, नवरत्न कंपनियाँ है उन सारी कंपनियों को बेच दिया जाए| यह जिन लोगो ने तय किया उन लोगो ने देश के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी की है। अगर देश को आत्मनिर्भर बनना है जिसको की सातवें साल में या छठे साल में प्रधानमंत्री मोदी ने देश को नया लक्ष्य दिया आत्मनिर्भर बनो। सवाल यह है, सरकार उसमे क्या कर रही है ? सरकार तो सिवाए कंपनियों को बेचने के, रेल को बेचने के, हवाई जहाज़ को बेचने के, हवाई अड्डों को बेचने के जो उसकी संपत्ति 70 साल में बनी थी हमारी हम उस सम्पति को कैसे बेचे और पेट्रोलियम कम्पनीयो को बेचने के लिए इसके अलावा सरकार कुछ और कर रही हो तो पता चले, लेकिन कर नहीं रही, इसलिए पता नहीं चल रहा। किसानो के लिए कुछ नहीं हो रहा है यह व्यवस्था है हमारी। किसानो के लिए कुछ नहीं सोच रही है, बेरोजगारों के लिए कुछ नहीं सोच रही है, रोजगार कैसे बड़े इसके लिए नहीं सोच रहे है, लॉ एंड आर्डर कैसे कंट्रोल में रहे इसके लिए नहीं सोच रही है, पुलिस में सुधार कैसे हो इसके लिए नहीं सोच रही है, अमेरिका का या सारी दुनिया का यूरोप का उदाहरण हमारे सामने है बस हमने एक काम कर दिया है की टेलीविज़न चैनलों के माध्यम से ख़बरें ज्यादा न आयें जहाँ पर लोग प्रदर्शन कर रहे हो। शायद उन्हें लगता है की लोग सोशल मीडिया में सिर्फ मनोरंजन देखते है खबरे उनके पास नहीं पहुँचती पर ऐसा है नहीं, खबरे पहुँचती है| कुल मिला कर के हमे यह देखना है की हमारा सिस्टम, हमारी व्यवस्था, हमारे सोचने समझने वाले लोग, हमारा थिंक टैंक, देश के लिए योजना बनाने वाले लोग, सही दांग से योजना बनाएँ जिसका की फ़ायदा देश के लोगो को हो। इस कोरोना ने बता दिया की अभी हमारे पास ऐसे लोगो की कमी है चाहे वह सरकार के लोग हो या विपक्ष के हो, क्यूंकि सबसे ज्यादा एक्सपोज़ अगर कोई हुआ है इस कोरोना बीमारी में तो देश का विपक्ष भी हुआ है। मीडिया के बारे में बात करने की ज़रूरत नहीं है क्यूंकि मीडिया तो अपने आप में एक अलग कहानी है। मुझे लगता है सरकार को गंभीरता से देश के पूरे सिस्टम के बारे में सोचना चाहिए और सिस्टम को चुस्त और दरुस्त करना चाहिए ताकि हम कोरोना जैसी बीमारी का या ऐसी ही किसी और भविष्य में आने वाली बीमारी का हिम्मत के साथ मुकाबला कर सके और जिसका शिकार इस देश के लोग ना बने। संतोष भारतीय प्रधान संपादक चौथी दुनिया

 निर्मला सीतारमण क्या आप जानती हैं ? | Santosh Bhartiya | Editors Take | Ep 344 | File Type: audio/mpeg | Duration: 1233

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 आत्मनिर्भर किसको बनाने की बात कर रहे हैं PM | | Santosh Bhartiya | Editors Take | Ep 343 | File Type: audio/mpeg | Duration: 2315

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